मूवी रिव्यू: RGV की 'सरकार 3' में दम नहीं है...
स्टार कास्ट: अमिताभ बच्चन, मनोज बाजपेयी, अमित साध, यामी गौतम, रोनित रॉय, जैकी श्रॉफ
डायरेक्टर- रामगोपाल वर्मा
रेटिंग- 2 स्टार
माथे पर लाल तिलक, गले और हाथों में
रूद्राक्ष की माला, आँखों में गुस्सा लिए जब दमदार आवाज में अमिताभ बच्चन
लोगों से कहते हैं ‘एक हाथ में माला है तो दूसरे हाथ में भाला है…’ तो
फिल्म के शुरू होते ही उम्मीद बंध जाती है कि उनके करिश्माई व्यक्तित्व के
साथ डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा कुछ शानदार दिखाने वाले हैं. लेकिन
जैसे-जैसे ये फिल्म आगे बढ़ती है एक-एक करके आपकी उम्मीदों पर पानी फेरती
हुई उस महल को धराशाई कर देती है जिसे रामगोपाल वर्मा ने 2005 में बनाने की
कोशिश की थी. जब आप ‘सरकार 3’ जैसी गंभीर फिल्म देखने गए हों और लोग उस पर
हंस रहे हों तो वाकई उसमें कुछ तो लोचा है.
यहां पहले आपको बता दें कि ‘सरकार 3’
रामगोपाल वर्मा के ‘सरकार’ फ्रेंचाइजी की तीसरी फिल्म है. ये फिल्म
हॉलीवुड की फिल्म ‘गॉडफादर’ से प्रेरित है. जब 2005 में ‘सरकार’ आई थी तो
लोगों ने उसे काफी पसंद किया था. 2008 में रामगोपाल इस सीरिज की दूसरी
फिल्म ‘सरकार राज’ लेकर आए जिसने लोगों को निराश नहीं किया. अब ‘सरकार 3’
भी रिलीज हो गई है.
कहानी
इस फिल्म में सुभाष नागरे (अमिताभ बच्चन)
की कहानी है जिसे जनता ‘सरकार’ कहती हैं. सरकार को जो सही लगता है वो करता
है चाहें वो भगवान के खिलाफ हो, समाज के खिलाफ हो, कानून के खिलाफ हो या
फिर पूरे सिस्टम के खिलाफ हो… इस फिल्म में सरकार का पोता शिवाजी नागरे
(अमित साध) की एंट्री होती है. ये बात सरकार के दो खास लोग गोकुल (रॉनित
रॉय) और गोरख (भरत दाभोलकर) को खटकती है. यही से शुरू होता है शह और मात का
खेल…
शिवाजी की गर्लफ्रेंड अनु (यामी गौतम)
अपने पिता की मौत का बदला सरकार से लेना चाहती है. यहां राजनेता देशपांडे
(मनोज बाजपेयी) भी है सरकार को लोगों की नजरों में गिराना चाहता है.
बिजनेसमैन माइकल वाल्या (जैकी श्रॉफ) सरकार को मार देना चाहता है और इसके
लिए कई तरह के हथकंडे अपनाता है.
इस कहानी में यहां कौन किसके साथ है और
कौन किसके खिलाफ इसी को दिखाने में सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की गई है.
पर्दे पर जो दिखता है वो सही नहीं है और जो सही है वो रामगोपाल वर्मा
दिखाते नहीं हैं. फिल्म के आखिर में जो क्लाइमैक्स आता है तो ये फिल्म
थ्रिलर की जगह कॉमेडी में बदल जाती है.
अभिनय
सुभाष नागरे का जो व्यक्तित्व है उसे
अमिताभ बच्चन से बेहतर कोई नहीं निभा सकता. इस मेगास्टार में वो बात है जो
अपने दम पर फिल्म को चला सकें और दर्शकों को लुभा सकें. डायलॉग से लेकर
फिल्म के हर सीन में जहां पर वो हैं उन्होंने जान फूंक दी है. उनका
कैरेक्टर गंभीर है, रोषिला है और देखते वक्त भी आप वही महसूस करते हैं.
रामू ने फिल्म में सिर्फ एक कैरेक्टर पर ध्यान दिया है और वो बिग बी हैं.
लेकिन वो शायद भूल गए थे कि जब तक हर कैरेक्टर उतना ही दमदार नहीं होगा एक
अच्छी फिल्म नहीं बन सकती.
इस फिल्म में मनोज बाजपेयी और जैकी श्रॉफ
जैसे बेहतरीन कलाकार हैं लेकिन वो भी इस फिल्म को खराब होने से नहीं बचा
पाए हैं. जैकी श्रॉफ जैसा विलेन तो आपने अब तक नहीं देखा होगा वो एक्टिंग
करते हैं तो समझ नहीं आता कि कॉमेडी कर रहे हैं या फिर कुछ और. मनोज
बाजपेयी के पास जितना था उतना नो उन्होंने अच्छा ही किया है. यामी गौतम का
स्क्रीन प्रेजेंस बहुत ही कम है उसमें भी उनके पास कुछ करने को ज्यादा नहीं
था.
खामियां
फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी ढ़ीली है कि
इंटरवल तक ये समझ आता कि आखिरकार रामगोपाल वर्मा इसमें दिखाना क्या चाहते
हैं. सेकेंड हाफ में जब स्टोरी आगे बढ़ती तो रामगोपाल वर्मा ने सस्पेंस
क्रिएट करने की कोशिश की है लेकिन सिनेमाहॉल में हर दर्शक को पता होता है
कि क्लाइमैक्स क्या है. फिल्म में कोई भी सीन एक दूसरे को जुड़ा हुआ नहीं
लगता. ऐसा लगता है कि उन्हें बस अलग-अलग शूट करके एक जगह रख दिया गया है जो
बहुत ही ज्यादा खटकता है.
ये फिल्म बहुत ही लाउड है. कई फिल्मों में
लीड किरदार को लाउड म्यूजिक और दमदार डायलॉग के साथ पेश किया जाता है और
लोग उस पर तालियां भी बजाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किरदार के साथ
उसका डायलॉग और साथ में चल रहे म्यूजिक का तालमेल अच्छा होता है लेकिन यहां
ऐसा नहीं है. यहां फिल्म धीरे-धीरे चल रही होती है अचानक लाउड म्यूजिक
बजता है और फिर अचानक खत्म हो जाता है. ऐसा लगता है कि कोई जल्दबाजी है.
इसके साथ ही फिल्म में वही पुराने डायलॉग हैं जो हम कई बार सुन चुके हैं-
* हर अच्छाई की एक कीमत होती है वो चाहें पैसा हो या फिर दर्द…
* जो वसूलों के रास्ते पर चलते हैं उनके दोस्त कम होते हैं और दुश्मन ज्यादा
* लालच और डर किसी को भी गद्दार बना देता है
* ये खेल उन्होंने शुरू किया है और खत्म मैं करूंगा
* पत्थर मारोगे तो कीचड़ तो उछलेंगे ही..
* राजनीति उतनी भी बुरी नहीं है जितना लोग समझते हैं
* जो वसूलों के रास्ते पर चलते हैं उनके दोस्त कम होते हैं और दुश्मन ज्यादा
* लालच और डर किसी को भी गद्दार बना देता है
* ये खेल उन्होंने शुरू किया है और खत्म मैं करूंगा
* पत्थर मारोगे तो कीचड़ तो उछलेंगे ही..
* राजनीति उतनी भी बुरी नहीं है जितना लोग समझते हैं
म्यूजिक- गणेश आरती है शानदार
फिल्म में अमिताभ बच्चन की आवाज में गणेश
आरती है जिसे बहुत ही शानदार ढंग से फिल्माया गया है. अमिताभ की दमदार
आवाज, कुछ स्लो मोशन शॉट्स और अबीर-गुलाल-फूलों के साथ फिल्माया गया ये
गाना दिल जीत लेता है.
इसके अलावा फिल्म कुछ-कुछ सीन्स में
कैलाश खेर की आवाज में साम दाम दंड भेद गाना बैंकग्राउंड में चलता है जो
फिल्म को और भी लाउड बनाता है.
कैमरा वर्क में कोई जवाब नहीं
इस फिल्म में सिनेमैटोग्राफर अमित रॉय ने
अपने कैमरा वर्क से इंप्रेस किया है. इसमें आपको वैसे सीन नहीं मिलेंगे
जैसे बाकी फिल्मों में दिखते हैं. यहां हर शॉट में एक अलग एंगल देखने को
मिलता है.
क्यों देखें-
अगर आप सरकार सीरिज या फिर रामगोपाल वर्मा
के फैन हैं तो ये फिल्म देखनी चाहिए. लेकिन ये फिल्म उन्हें बहुत निराश
करेगी जो ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि RGV इस फिल्म से अपनी धमाकेदार वापसी
कर रहे हैं. ट्रेलर में दिखाया गया था कि घायल शेर बहुत खतरनाक होता है और
अब रामगोपाल वर्मा की स्थिति भी किसी घायल शेर से कम नहीं है और ये दर्शकों
के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होने वाले हैं.
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