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Saturday 21 May 2016

रिव्यू: खूबसूरती बनी मुसीबत, सरबजीत में ऐश्वर्या हैं सबसे कमजोर

रिव्यू: खूबसूरती बनी मुसीबत, सरबजीत में ऐश्वर्या हैं सबसे कमजोर

 

बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय की मोस्ट अवेटेड फिल्म सरबजीत रिलीज हो गई है. इस फिल्म को ऐश्वर्या के फिल्मी करियर के लिए भी अहम माना जा रहा है. इस फिल्म में ऐश्वर्या रीयल लाइफ कैरेक्टर निभा रही हैं. 'सरबजीत' फ़िल्म पाकिस्तान में कैद रहे सरबजीत की जीवनी पर आधारित है.
'सरबजीत' में ऐश्वर्या उनकी बहन दलबीर कौर का किरदार निभा रही हैं. इस फिल्म में दलबीर कौर के संघर्ष की कहानी दिखाई गई है. समीक्षकों की मानें तो फिल्म में ऐश्वर्या राय की वजह से थोड़ी कमजोर है. आपको यहां बताते हैं कि समीक्षकों ने इस फिल्म के बार में क्या लिखा है- 
 
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अजय ब्रह्मात्ज लिखते हैं, 'ओमंग कुमार की फिल्‍म ‘सरबजीत’ है तो सरबजीत की कहानी,लेकिन निर्देशक ने सुविधा और लालच में सरबजीत की बहन दलबीर कौर को कहानी की धुरी बना दिया है. इस वजह से नेक इरादों के बावजूद फिल्‍म कमजोर होती है. अगर दलबीर कौर पर ही फिल्‍म बनानी थी तो फिल्‍म का नाम दलबीर रख देना चाहिए था. ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन ने दलबीर कौर को निभाने में मेहनत की है. इसमें उनका सौंदर्य आड़े आ जाता है. हाल ही में कान फिल्‍म समारोह के रेड कार्पेट पर हम उनकी आकर्षक छवियां देख चुके हैं. उसके तुरंत बाद ‘सरबजीत’ में जुझारू दलबीर की भूमिका में वह कोशिशों के बावजूद पूरी तरह से उतर नहीं पातीं.'
ब्रह्मात्ज लिखते हैं, 'सरबजीत की भूमिका में रणदीप हुडा की पूरी मेहनत सफल रही है. वे सरबजीत की मनोदशा,टूटन और नाउम्‍मीदी को अच्‍छी तरह जाहिर करते हैं. रिचा चड्ढा सरबजीत की पत्‍नी सुख की भूमिका में हैं. उन्‍हें बैकग्राउंड में ही रखा गया है. दलबीर के साथ के दृश्‍यों में ब गैर बोले भी वह हावी होने लगती हैं और जब संवाद मिले हैं तो उन्‍होंने अपनी योग्‍यता जाहिर की है.'
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में शु्भ्रा गुप्ता लिखती हैं, 'इस फिल्म का नाम सरबजीत नहीं दलबीर होना चाहिए क्योंकि इसमें सबकुछ दलबीर का ही दिखाया गया है. सबसे पहली बात ये कि इस फिल्म के लिए ऐश्वर्या राय का चुनाव गलत है क्योंकि फिल्म में जब वो पंजाबी में बात करती है तो सब कुछ दर्शक के सिर के ऊपर से चला जाता है. हालांकि कुछ दृश्यों में वो बिना बोल ही अपने दर्द और पीड़ा को बेहतर ढंग से दिखा पाती हैं. रणदीप ने सरबजीत के अपने रोल में जान डाल दी है. फिल्म में उनका लुक और उनकी बातचीत का लहजा हर एक चीज बहुत ही शानदार ढंग से दिखाई है. इस फिल्म में अगर कुछ देखने लायक है तो वो रणदीप हुड्डा हैं.'
हिंदुस्तान में विशाल ठाकुर लिखते हैं, 'अभिनय के मंच पर बांधे रखने का प्रभावशाली कार्य रणदीप हुड्डा ने बखूबी किया है. जेल में यातनाएं झेल रहे कैदी का मेक-अप और उसके हावभाव को उन्होंने बखूबी अपने अभिनय में उतारा है. उनकी आंखों से बेबसी और शरीर से टूट जाने की आवाज महसूस होती है. लगता है कि हां वाकई कोई जेल से बाहर आने के लिए तड़प रहा है. लेकिन दूसरे छोर ऐश्वर्या राय ने बस अपने किरदार को बचाने की कोशिश भर ही की है. पंजाबियत उन पर नहीं फबती. न ही वह बूढ़ी लगती है. साठ साल की उम्र वाला किरदार उनके ऐश्वर्या के सामने बौना सा लगता है.'
आजतक में नरेंद्र सैनी फिल्म को दो स्टार देते हुए लिखते हैं, 'ऐश्वर्या राय का उच्चारण गड़बड़ है. कुछ सीन हैं जहां वे ठीक रही हैं लेकिन कुल मिलाकर इमोशंस को लेकर डायरेक्टर की चॉयस निराश करती है. उमंग कुमार इसे दिल को छू लेने वाली बायोपिक बनाने में पूरी तरह चूकते नजर आते हैं. वह एक बहन के संघर्ष को दिखाने की कोशिश में थे. उनके इरादे बेशक अच्छे रहे हैं लेकिन अत्यधिक व्यावसायिक सोच फिल्म को पटरी से उतार देती है. कुल मिलाकर यह पूरी फिल्म ऐश्वर्या राय के लिए बनाई गई लगती है. उनके हार्डकोर फैन्स के लिए यह फिल्म हो सकती है. 'सरबजीत' से एक शानदार बायोपिक की उम्मीद रखने वालों को जरूर निराशा हो सकती है.'
सत्याग्रह वेबसाइट के रिव्यू के मुताबिक, 'शायद अपने करियर में पहली बार ऐश्वर्या ने किसी किरदार के लिए इतनी मेहनत की है और हर दृश्य में यह मेहनत नजर आई है. लेकिन बावजूद उनके समर्पण के, कहानी को आगे ले जाने वाले इस किरदार के साथ वे एक ग्राम भी न्याय नहीं कर पाईं. उल्टा उसे मेलोड्रामा के ड्रम में डुबा आईं.'
आईं.' आगे लिखा है. 'सरबजीत’ की समीक्षा में आप जितने सितारे जड़े देख रहे हैं ये भी सिर्फ और सिर्फ रणदीप हुड्डा की वजह से हैं. वे ऐसे बदकिस्मत अभिनेता हैं जो हाल के सालों में कमाल अभिनय करने लगे हैं (बात चाहे ‘हाईवे’ की हो या ‘मैं और चार्ल्स’ की) लेकिन प्रशंसा से उतनी ही दूर हैं जितना अच्छी फिल्मों से. इसलिए आप रणदीप हुड्डा के लिए ‘सरबजीत’ देखिएगा. और कामना कीजिएगा कि इस अभिनेता को जल्द ही वो तारीफें और बॉक्स-आफिस सफलताएं मिलें जिसका ये हकदार है. वरना सिनेमा का इतिहास गवाह रहा है कि कई कलाकारों को बुद्धिहीन मसाला फिल्में करने के लिए सिर्फ इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि वक्त रहते दर्शकों ने उनके उम्दा काम को उचित सम्मान नहीं दिया.'
रिव्यू पढ़ने के बाद ये कहा जा सकता है कि फिल्म में ऐश्वर्या राय कुछ खास नहीं कर पाई जबकि उनके पास करने के लिए बहुत कुछ था. वहीं रिचा चड्ढा ने अपनी छोटी सी भूमिका में ही जान डाल दी है. तो अगर आप रणदीप हुड्डा के फैन हैं और उनकी कमाल की एक्टिंग देखना चाहते हैं तो ये फिल्म जरूर देखिए. ऐश्वर्या के फैंस इस फिल्म से निराश होंगे. 
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