मूवी रिव्यू: फैन
रेटिंग: *** (तीन स्टार)
‘फैन’ शाहरुख ख़ान की हर फिल्म से ‘हट के’
है क्योंकि इसमें रोमांस नहीं है, हीरोइन नहीं है और गीत भी नहीं हैं.
लेकिन क्या ‘हट के’ का मतलब शानदार है? कम से कम पहले आधे घंटे की फिल्म के
बारे में ये कहा जा सकता है. मगर इसके बाद शायद आप बार-बार सवाल पूछें कि
ये हो क्या रहा है? कुछ ज़्यादा तो नहीं हो गया? अच्छी ख़बर ये है कि
तक़रीबन ढाई घंटे की फिल्म के हर फ्रेम में शाहरुख ख़ान हैं और वो फॉर्म
में हैं.
फैन कहानी है दिल्ली की गलियों में
पले-बढ़े, मध्यवर्गीय परिवार के गौरव चांदना (शाहरुख खान) की जो बचपन से
सुपरस्टार आर्यन खन्ना (शाहरुख ख़ान) का दीवाना फैन है. ट्विस्ट ये है कि
उसकी शक्ल भी काफ़ी हद तक आर्यन से मिलती है. इसी वजह से वो अपने मोहल्ले
के नाटकों में आर्यन खन्ना की नकल और मिमिक्री करके कई ईनाम जीत चुका है.
आर्यन के जन्मदिन पर उससे मिलने का अरमान लिए गौरव मुंबई पहुंच जाता है.
लेकिन दोनों की मुलाक़ात कुछ ऐसे हालात में होती है कि गौरव की ज़िंदगी ही
पलट जाती है. एक दीवाने फैन का दिल टूट जाता है और वो सुपरस्टार से टकराने
का फैसला करता है. किसी साइकोपैथ मुजरिम की तरह.
फैन बने गौरव के रोल में शाहरुख ख़ान की
मेहनत साफ़ दिखती है. हॉलीवुड के मशहूर मेकअपआर्टिस्ट ग्रेग कैनम के कमाल
के साथ ख़ुद शाहरुख ने जिस तरह अपनी चाल-ढाल और लहजा बदला है, वो फिल्म का
सबसे मज़बूत पक्ष है. कई बार वाकई लगता है कि ये दो अलग इंसान हैं. जब गौरव
सुपरस्टार को पहली बार देखता है और फिर पहली बार मिलता है तो उसकी आखों का
भाव और आवाज में हलचल देखते ही बनती है. वहीं सुपरस्टार आर्यन खन्ना के
रोल में आम तड़क-भड़क और स्टारडम दिखाने के बजाय उन्हें गंभीर और संयमित
दिखाया गया है. शुरुआत में दोनों किरदार अपना असर छोड़ते हैं.
निर्देशक मनीष शर्मा हमेश की तरह दिल्ली
के मध्यवर्गीय परिवार का अच्छा ख़ाका खींचते हैं. मगर एक अच्छी शुरुआत के
बाद फिल्म अचानक गियर बदलती है. सुपरस्टार को सबक सिखाने के लिए गौरव हर हद
पार कर जाता है. जिस तरह गौरव के किरदार को खड़ा किया जाता है, उसे देखकर
शायद आपको लगे कि दीवानगी में शायद एक फैन को इतना बुरा लग भी सकता है. आप
सोचेंगे कि शायद ऐसा किरदार हो भी सकता है.
परेशानी है आर्यन खन्ना के किरदार और उनके रिएक्शन से. एक समझदार इंसान
जो सुपरस्टार है, जिसे फैन्स की आदत है, जो हर पल सिक्योरिटी से घिरा रहता
है वो ऐसी बचकानी हरकते कैसे कर सकता है. फिल्म के लेखक हबीब फैसल और मनीष
शर्मा ने शायद यही सोचा कि ध्यान शाहरुख पर ही रहेगा और दर्शक इतना नहीं
सोचेंगे. लेकिन फिल्म के शानदार चेज़ सीन, एक्शन सीन और शाहरुख का बढ़िया
परफॉरमेंस भी स्क्रिप्ट की इस बड़ी कमज़ोरी को नहीं छुपा पाते.हमशक्ल होने का फ़ायदा उठा कर गौरव, आर्यन खन्ना बनकर हरकतें करता है जिसकी वजह सुपरस्टार बदनाम होता है. कोई सुपरस्टार मीडिया से बचने के लिए क्यों टैक्सी लेकर अपने बंगले पर जाएगा, किसी फ़ैन को किस तरह सुपरस्टार के पूरे शेड्यूल के हर पल की ख़बर होगी? ये सवाल आपको परेशान करेंगे.
निर्देशक मनीष शर्मा ने दोनों किरदारों को
बैलेंस करने की कोशिश की है और आख़िर तक आपकी समझ में नहीं आएगा कि कौन
सही है और आप किसका साथ दें. फिल्म में कोई गीत नहीं है और रफ़्तार भी धीमी
नहीं पड़ती. फरफॉरमेंस के हिसाब से ये शाहरुख की पिछली कई फिल्मों में
सबसे बेहतर परफॉरमेंस है. अपने दोनों ही रोल में उन्होंने बहुत अच्छा अभिनय
किया है. मगर कमज़ोर स्क्रिप्ट उनका साथ नहीं देती. इस अच्छे आइडिया के
साथ सबको और बेहतर फिल्म की उम्मीद थी. लेकिन अगर आप शाहरुख ख़ान के फैन है
तो ये फिल्म ज़रूर देखिए.
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