Jamshedpur : Bollywood - Page By Inderjeet Singh
रेटिंग: साढ़े तीन स्टार
जब
आप सलमान ख़ान की फिल्म देखने जाते हैं तो कुछ बातें मान कर जाते हैं.
मसलन फिल्म में सलमान सुपरहीरोनुमा किरदार में होंगे, फिल्म में अजीबोग़रीब
एक्शन होगा जिसमें सलमान मार खाते हुए क़तई नज़र नहीं आएंगे, ‘मुन्नी
बदनाम', 'ढिंका चिका', 'जुम्मे की रात है’ जैसे एक-दो आइटम डांस होंगे और
हां, सलमान की एक-दो पंच लाइन्स ज़रूर होंगी जैसे- ‘मैं दिल में आता हूं
समझ में नहीं’. सलमान की फिल्मों से ऐसे मसालों की उम्मीद करना ग़लत भी
नहीं है क्योंकि सलमान सालों से यही तो कर रहे हैं.
कबीर ख़ान की ‘बजरंगी भाईजान’ में ये सबकुछ नहीं है.
यहां
सलमान अपने आप के बजाय अपने किरदार को निभाने की कोशिश करते नज़र आ रहे
हैं, यहां एक छोटा सा फाइट सीन है और आइटम सॉन्ग और पंच लाइन्स तो हैं ही
नहीं. इसके बावजूद सलमान ख़ान के पिछले पांच साल के ब्लॉकबस्टर करियर की ये
सबसे अलग और बेहतर फिल्म है.
इसका मतलब ये क़तई नहीं है कि फिल्म में
ख़ामियां नहीं हैं. ऐसी कई बातें हैं जिनका लॉजिक या तर्क से दूर-दूर तक
कोई लेना-देना नहीं लेकिन कबीर ख़ान ने मेनस्ट्रीम सिनेमा के दायरे में
रहकर एक साफ़ पारिवारिक फिल्म बनाई है और बिना उपदेश दिए एक पॉलिटिकल
स्टेटमेंट भी दे गए हैं.
कहानी
फिल्म
की कहानी के केन्द्र में एक 6 साल की पाकिस्तानी बच्ची शाहिदा (हर्षाली
मल्होत्रा) है जो बोल नहीं सकती. वो अपनी मां के साथ भारत आती है लेकिन
किसी तरह वो यहीं छूट जाती है. उसकी मुलाक़ात चांदनी चौक में रहने वाले पवन
कुमार चतुर्वेदी उर्फ़ बजरंगी (सलमान ख़ान) से होती है. बजरंगी एक
सीधा-साधा शख़्स है है और हनुमान-भक्त है. वो कभी झूठ नहीं बोलता. वो ठान
लेता है कि वो बच्ची को उसके घर तक पहुंचाकर ही दम लेगा.
परेशानी ये है कि ना उसके पास पासपोर्ट-वीज़ा
है, ना ही बच्ची के पास. कैसे वो सरहद पार करता है, पाकिस्तान में क्या
मुश्किलें आती है और क्या वो मुन्नी को उसके माता-पिता से मिलवा पाता है?
साथ ही बजरंगी और रसिका (करीना कपूर) की लव स्टोरी भी चलती रहती है.
कहानी
सुनकर शायद आपको लगे कि पाकिस्तान में घुसकर बजरंगी सनी देओल की ‘ग़दर’
जैसा कुछ करता होगा. कहानी में वैसे एक्शन और डायलॉग का स्कोप भी बहुत था.
लेकिन कबीर ख़ान की फिल्म इस मायने में अलग है. यहां फिल्म के किरदार जैसे
शुरुआत में बता दिए गए, वो अंत तक वैसे ही चलते रहे. फिल्म कहीं भी अपनी
सादगी नहीं छोड़ती.
सलमान का किरदार बजरंगी
बहुत अच्छा लिखा गया है. बजरंगी एक एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखता है
जो बेहद धार्मिक है. उसके पिता शहर में आरएसएस की शाखा प्रमुख रहे हैं और
ख़ुद बजरंगी भी बचपन से शाखा में जाता रहा है. वो नेक है, झूठ नहीं बोलता,
मांसाहारी खाना नहीं खाता और ना ही दूसरे मज़हब के धार्मिक स्थानों में
जाता है. चांदनी चौक में जिस परिवार में वो रहता है वहां भी तक़रीबन
मध्यवर्गीय परिवारों के बीच ऐसा ही धार्मिक डिवाइड दिखाया गया है. ऐसे
कट्टर ब्राहम्ण परिवार में एक मुस्लिम, पाकिस्तानी बच्ची का आना और फिर जब
बजरंगी अपनी पहचान छुपाए बिना पाकिस्तान की गलियों में बच्ची का घर तलाश
करना. यहीं सामने कहानी में छुपी इंसानियत. ऐसी फिल्मो में अक्सर बड़े-बड़े
डायलॉग और उपदेश होते हैं, ‘बजरंगी भाईजान’ इन सबसे बची रही है और यही इस
फिल्म की ख़ासियत है. फिल्म के कुछ सीन काफ़ी भावात्मक है.
फिल्म की सबसे बड़ी खामी
फिल्म
की सबसे बड़ी खामी है इसकी धीमी रफ़तार. ख़ासतौर से सलमान की फिल्में अपनी
मसालेदार एडिटिंग और तेज़ रफ़तार के लिए जानी जाती हैं लेकिन ‘बजरंगी
भाईजान’ में पहले भाग में कहानी का बिल्डअप बहुत धीमी गति से होता है. लोग
सिर्फ़ इंतज़ार करते हैं कि सलमान कब कुछ करेंगे. इसके अलावा जिस तरह सरहद
पर पाकिस्तानी अफ़सर बिना पासपोर्ट-वीज़ा के बजरंगी को अपने देश में दाख़िल
होने की इज़ाजत देते हैं, किस तरह पूरे पाकिस्तान में बिना पते के बजरंगी
एक छोटी सी झोपड़ी तलाश करता है और पिर फिल्म का क्लाईमैक्स जो किसी भी तरह
तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता लेकिन ये असर ज़रूर छोड़ता है. शायद यही
मेनस्ट्रीम सिनेमा की ताक़त है.
इमेज चेंज करने की ऐसी कोशिश कुछ साल पहले
शाहरुख़ ख़ान ने फिल्म ‘माय नेम इज़ ख़ान’ के साथ की थी. सलमान का ये
किरदार भी तक़रीबन उसी ढर्रे पर है. ये देखना दिलचस्प होगा कि दबंग या किक
जैसी फिल्म या एक्शन की उम्मीद लेकर आए सलमान के दीवाने फैन्स को ये फिल्म
कैसी लगती है?
अभिनय
फिल्म
में सलमान ख़ान अपनी पिछली फिल्मों की तरह लाउड नज़र नहीं आते और ये बदलाव
अच्छा लगता है. 6 साल की बच्ची हर्षाली को देखखर आप दंग रह जाएंगे. बिना
बोले उन्होंने बेहद ख़ूबसूरत अभिनय किया है. वो फिल्म की जान हैं. लेकिन
फिल्म मोड़ लेती है इंटरवल के बाद जब पाकिस्तानी न्यूज़ रिपोर्टर के रूप
में नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी पर्दे पर आते हैं. नवाज़ का हर एक सीन लाजवाब है.
ये हैरत की बात है कि सलमान ख़ान की फिल्म में
दर्शकों की तालियां नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी के हिस्से आई हैं. अगर आप सलमान
के फैन नहीं भी हैं, ये फिल्म नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी की वजह से देख लें.
फिल्म में करीना को बहुत ज़्यादा स्क्रीन टाइम नहीं मिला है लेकिन वो अच्छी
लगी है. फिल्म में छोटे छोटे लेकिन अच्छे रोल में ओम पुरी और राजेश शर्मा
भी हैं.
निर्देशक कबीर ख़ान ने फिल्म को कहीं
भी भटकने नहीं दिया है. फिल्म धर्म, सरहदों और ज़ात-पात से ऊपर उठकर
इंसानी जज़्बातों की बात करती है और दबी ज़ुबान में कुछ अहम सवाल भी खड़े
कर जाती है.
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